गौरव गाथा
गौरव गाथा
वह नव जवान इस भारत का
जिसके सिर पर बस एक फितूर
वतन के खातिर मरना उसको, करना
दुश्मन के ना – पाक इरादे चकनाचूर ॥
ह्रिदय में जलती ज्वाला लेकर
लिए सिंह सा विजय दहाड़ ,
खड़ा रहा वह अडिग हिमालय सा
करने दुश्मन पर ठोस प्रहार॥
सागर के ऊँची लहरों से भी
ऊँचे थे उसके स्वाभिमान
मातृभूमि कि सेवा में
न्योछावर करदी उसने अपनी जान ॥
एक नव जवान जो जनमा था
भारत की पावन माटी में
पड़ा मिला वह करुण व्यथा में
कश्मीर की छोटी घाटी में ॥
बिलख रहे थे ये बादल
बिलख रही थी उसकी माँ
पर वह तो कहते अमर हुआ
आबाद रहे यूं भारत माँ ॥
कफन तिरंगे कि ओढ़े
प्रचलित करता भारत की शान
नमन है तुझको मेरा ओह!
भारत के सैनिक वीर जवान ॥