पहचान
पहचान
चलो, आज एक नया आशियाना
बना लेते हैं
हार का एक और जश्न
मना लेते हैं
नए सफ़र पर फिर से
एक नया कदम
बढ़ा देते हैं
अपनी कमियों को फिर से
एक नया जामा
ओढ़ा देते हैं...।
हार का जश्न मनाते - मनाते
जीत का स्वाद भूल चुके हैं
हर गम में मुस्कुराते - मुस्कुराते
रोने का अंदाज़ भूल चुके हैं
अपने चेहरे पे इतने मुखौटे
चढ़ा चुके हैं कि
आज अपने असल चेहरे की
पहचान भूल चुके हैं...।
आज फ़कत अकेले बैठा तो
आँखों से गिरी एक बूंद ने कहा,
आज इन श्वेत
और श्याम रंगों को
छोर देते हैं
सात रंगों से
एक नया अरमान
बना लेते हैं
जीवन की बगिया में फिर से
एक नया फूल खिला लेते हैं...।