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Kamal Purohit

Drama

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Kamal Purohit

Drama

जीत हार

जीत हार

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जिंदगी को मैं जब आजमाने लगा

दुश्मनों को गले भी लगाने लगा।


देख कर मेरे कद को हँसा जब ज़हां

अपनी हस्ती को तब से बढ़ाने लगा।


जीत को हमने आदत बनाई थी जब

हार का डर भी तब से सताने लगा।


हार का डर ख़तम मैंने यूँ कर दिया

जीत की आस अब से भगाने लगा।


चाँद को फिर से छूने की ख्वाहिश जगी

चाँद सा जब तुझे जग बताने लगा।


सुन "कमल" राह में मुश्किलें है बड़ी

मुश्किलें देख मैं मुस्कुराने लगा।


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