मेरा तो मुझमें कुछ बचा ही नहीं...
मेरा तो मुझमें कुछ बचा ही नहीं...
सुनो ...
हाँ ...
कुछ कहना था ...
हाँ कहो ना ...
मैं सुन रहा हूँ ...
नहीं,रहने दो ...
शायद तुम नहीं समझोगे ...
तुम कोशिश तो करो..
मैं भी कोशिश करूंगा...
मुझे तुम्हारी चुप में छुपी
ख़ामोशी का दर्द पीना है
दे सकोगे...
मैं खामोश कहाँ हूँ ....
बोल तो रहा हूँ (दर्द के गहरे कुएं से निकली आवाज़ सा )
क्या दे सकते हो ?
मेरा तो मुझमें कुछ बचा ही नहीं ...
अच्छा ऐसा करो
अपने अनकहे ज़ज्बात
कुछ बिखरे अहसास
कुछ टूटे पल
कुछ सिमटी घड़ियाँ
कुछ अंतस के रुदन
कुछ वो दिल का
जला हुआ टुकड़ा
जिस पर मेरा
नाम लिखा था
सिर्फ इतना मेरे
नाम कर दो
मैं तुम्हारा हर गम
हर आह , हर आँसू
हर दर्द पी जाना चाहती हूँ
क्या तुम इतना भी
नहीं कर सकते
मेरे लिए ...
नहीं, मेरा तो मुझमें कुछ बचा ही नहीं...
सब वक्त की
आँधियाँ उडा ले गयीं
ज़माने ने मेरा
हर ख्वाब , हर ख़ुशी
हर तमन्ना ,हर आरज़ू
कब छीन ली
पता ही ना चला
अब यहाँ सिर्फ
अरमानो की
सुलगती हुई
लकड़ियाँ
सिसक रही हैं
मेरी जिंदा लाश
अब सड़ने लगी है
जब से तुम गयी हो...
कब तक मेरे बुत से
दिल बहलाओगे
मैं तुम से जुदा होकर भी
तुम्हारी यादो की
क़ैद से आज़ाद
ना हो पाई हूँ
बस बहुत हुआ
अब मेरी सारी
अमानतें मुझे दे दो
तुम तो बुत
के सहारे जी भी
लेते हो मगर मैं
मैं तो पल- पल
तुम्हें सिसकते
तड़पते देखती हूँ
सोचो मुझ पर
क्या गुजरती होगी
दे दो ना मुझे
मेरे सारे लम्हात
शायद कुछ पल
का सुकून मेरी
रूह को भी मिल जाये
तुम्हें मेरे सूखे
अश्कों की कसम
दोगे ना ...
मगर,मेरा तो मुझमें कुछ बचा ही नहीं...
रूह और जिस्म
के इस प्रेम पर
सितारे भी
रश्क कर रहे थे
कुछ पल इस
पवित्र प्रेम के
पीने को तरस रहे थे
रूह और जिस्म के
इस अद्भुत मिलन के
गवाह बन रहे थे