साजिशों के शिकार
साजिशों के शिकार
किसी काम के ना रहे, बेकार हो गए,
जो दिल साजिशों के शिकार हो गए|
वो ज़ख्म ठीक होने का नाम नहीं लेते,
जिनमें तीर सीने के आर-पार हो गए|
आदतें नहीं बदलती ना ही बदले फितरतें,
बस वो लोग अब और होशियार हो गए|
साजिशों ने सीधे-सादे को बुरा बना दिया,
उसके सफ़ेद कपड़े कब के दागदार हो गए|
तू किससे वफ़ा की उम्मीद रखेगा नादान,
जब तेरे अपने लिए फैसलें गद्दार हो गए|
जो सदा सजदा करते रहें अपनी कला को,
वही जावेद अख्तर और गुलज़ार हो गए|
उन्हें उनकी गलतियों का एहसास करवाया,
अब उनकी नज़रों में हम कसूरवार हो गए|
खुद ही दगा करके दिल से निकाल दिया,
इश्क की नौकरी से हम बेरोज़गार हो गए|
इस कदर से बेकदर हुए हमारे जज़्बात,
रद्दी के भाव बिकने वाले अखबार हो गए|
यूं सदमों के सिलसिले चले ज़िन्दगी में,
कि उम्र भर के लिए हम बीमार हो गए|
कोई तोड़ गया हमें इतनी बुरी तरह से,
अब टुकड़ों में जीने के आसार हो गए|
रिश्तों से दिल लगाना छोड़ दे अशीश,
शर्मसार तेरे किए सारे ऐतबार हो गए|