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Dr Sangeeta Gandhi

Fantasy

3  

Dr Sangeeta Gandhi

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माँ का स्मृति पुंज

माँ का स्मृति पुंज

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माँ -- तुम्हारी  स्मृतियों की फुहारों  से मन तृप्त है ,

क्या हुआ जो स्थूल स्वरुप अब लुप्त  है ।

समझ पाती हूँ अब तुम्हारे वजूद की वो भीगी ज़ंज़ीरे  ,

जिनकी नमी से नम हैं आज मेरे  चेहरे की सारी लकीरें ।

वक़्त कहता है ये लकीरें हैं उम्र की परछाइयां ,

न जाने वो ! ये हैं तुम्हारी सम्वेदनाओं की गहराइयाँ ।

अब उम्र की सांझ- वेला में याद आती हैं वो नसीहतें ,

मेरी कच्ची उम्र में जो मुझे लगती थीं बड़ी मुसीबतें ।

तुम्हारे अस्तित्व की वो ‘ स्त्री -शक्ति ‘ ,

समर्पण ,प्रेम ,करुणा ,ममत्व की वो प्रकृति ,

रिक्त। था इन सबसे ‘ पिता के पुरुषत्व का संसार ‘।

हुआ मेरे भीतर तुम्हारी ही गरिमा का संचार ।

पिता थे ‘ सूर्यपुंज ‘ तो तुम थीं ‘ धरा की शीतलता ‘,

उनके सूर्य थी तुम्हारी तेजस्विता ।

स्मरण  आता है तुम्हारा दिन भर आँगन में  डोलना ,

दौड़ -दौड़ सब काम करना मुंह से कुछ न बोलना ।

रुनझुन करती पायल  तुम्हारी कोयल संगीत सुनाती थी ,

लोरी तुम्हारी हम बच्चों को मीठी नींद सुलाती थी ।

तुम्हारी निशानी ‘ वो गुड़िया ‘ आज भी सहेज कर रखी है ,

आज भी बन ‘ नन्हीं ‘ मैंने उसकी ऊँगली थाम रखी है ।

तुम्हारे हाथ की  वो ‘ बेसन रोटी ‘ याद आती है ,

माँ --तुम्हारी गोद  की सुख -स्मृतियां बड़ा रुलाती हैं ।

 

 


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