सिर्फ़ एक पल
सिर्फ़ एक पल
सिर्फ़ एक पल की दूरी में,
ख़ुशी, गम में बदल सकती है,
समय तो है ही परिंदा,
जिसका कोई घोंसला नहीं है।
ना देख तू आगे- पीछे,
ज़िंदगी हर पल,
सिर्फ़ एक पल की है !
थम गयी अगर, तो मौत है,
ज़िंदा तो माँझी में भी नहीं है !
क्यूँ खवाबों का पहरेदार बना है ?
ज़िंदा तो बेहोशी में भी नहीं है !