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Meenakshi Sukumaran

Others

1.8  

Meenakshi Sukumaran

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ये जीवन की कैसी विडंबना है ये ..

ये जीवन की कैसी विडंबना है ये ..

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बस एक आह , एक ख़ामोशी ,एक सदा

बिन कही.... बिन सुनी .....बिन देखी

कैसी विडंबना है ये..... .........

 

कहीं तरसते हाथ लरसती आँखें

माँ बाप की गोद पाने को औलाद

और

कहीं जन्म होते ही डाल दिया जाता

कचरे के डिब्बे में या अनाथालय

कैसी विडंबना है ये.....

कहीं तरसते अंनाथ माँ बाप के साथ को

और

कहीं अपने ही माँ बाप को छोड़ जाते

वृद्ध आश्रम

कैसी विडंबना है ये.........

जीवन भर जलता रहे मानस

द्वेष , ईर्षा,  लालच की अग्नि में

और

अंत : चिता पर जलता ही हो जाये

विदा दुनिया से

कैसी विडंबना है ये

पहले घर कच्चे थे लेकिन रिश्ते पक्के

और

आज घर पक्के रिश्ते कच्चे

कैसी विडंबना है ये

आज .......

न प्यार , न एहसास , न रिश्तों

का रहा कोई मोल

 

जो न जीने दें न आस छोड़ने दें ||
~~~~ मीनाक्षी सुकुमारन ~~~~


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