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Bhavna Thaker

Abstract Romance

5.0  

Bhavna Thaker

Abstract Romance

अब रहने दो

अब रहने दो

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406


आफ़ताब की आग सी मैं...

कोई ज़र्द सितारा नहीं...

तपीस है मेरी रूह में...

पोरों को जलाओ ना...

मेरे दायरे के आसमान पर ही...

उड़ने दो मुझे..!


पिंजर के पंछी सी फितरत नहीं...

पाने की ख़्वाहिश में जल जाओगे...

न रख पाओगे मुझे तुम्हारे ख़्वाबगाह में...

रेत सी बह जाऊँगी न बाँधों मुठ्ठीयों में...

मत पालो ख़्वाब मेरे मोह का...!


सपनो की सतह पर ना समा पाऊँगी...

नहीं हौसला किसी में..

जो मिला ले आँख मेरी तपीस से..!

आबशार बन पाओगे बोलो...!


रहने दो...!


बूँद की हेसियत कहाँ..

जो ज्वालामुखी पर छा जाए...

खुद पर बहुत इतरा लिया तुमने...

नारी को नीचा बहुत दिखा लिया...

नारी हूँ में आज की

लाचार नहीं कमज़ोर नहीं

सक्षम हूँ असाधारण सी

संभाल पाओगे क्या मुझे अपने संसार में ?


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