जीवन काव्य
जीवन काव्य
देख जीवन काव्य को
कौतूहल मन में उठा
ईश्वर के इस गीत में
कुछ तो अंकित मैं भी करूं।
एक पद्य मेरा भी हो
कुछ तो संचित मैं भी करूँ
वीर रस या हास्य रस
या हो फिर वो रौद्र रस
भाव सोचता ही रहा
शब्द पकड़ ही न सका,
और अर्थ खोजता ही रहा...!