चहकना ,महकना ,बहकना
चहकना ,महकना ,बहकना
बच्चे से बाप हो जाने के सफ़र में
चहकना अगर विषाद हो जाना है
महकना भूले दिनों की बात हो जाना है
बहकना तुम्हारा दोष हो जाना है
तो इस पर हो चिंतन
समाज का मंथन
कि चहकना ,महकना ,बहकना
हमें ज्यादा इन्सान बनाते हैं ?
हाँ है ,तो
बचपन से आगे बढ़ना है
विषाद से लड़ना है
ताकि
महक बरक़रार रहे
चहक बढ़ती रहे
बहकना मर्यादित रहे
बच्चों के बाप को
डालना होगा खाद-पानी
खरपतवार मिटाना होगा
गढ़ना होगा ऐसा परिवेश
जहाँ
चहकना ,महकना ,बहकना
एक उम्र तक सिमित ना हो
बच्चे और बच्चे के बाप
चहकते रहें, महकते रहें ,बहकते रहें
उम्र ,समय ,जगह की सीमाओं से परे
और अगर ना है
तो हमें इन्सान होने के मतलब को फिर से गढ़ना होगा !