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manisha sinha

Drama

4.9  

manisha sinha

Drama

हार जीत

हार जीत

1 min
466


रिश्तों और ख़्वाहिशों की दो,

पोटली बना 

सम्भाल रखा है, दिल की संदूक़ों में 

बड़े अरमानों से,सहेज कर ।

टटोलता रहता हूँ, उन्हें हर पल

कहीं, गाँठ ढीली ना पड़ जाए

हालातों में फँसकर।


रिश्तों से आँखें चुराकर,

झाँक लेता हूँ,

ख़्वाहिशों की पोटली में, 

जब ख्वाहिशें सोती हैं,

निभा लेता हूँ,रिश्ते मैं।

बड़ी मुश्किल से रखता हूँ,

सामंजस्य दोनों में बनाकर।


डरता हूँ,कहीं दोनो का

आमना सामना ना हो जाए

क्या होगा,जो उन दोनो को

एक दूसरे के होने का,पता चल जाए।

चौकन्ना रहता हूँ, मैं रात दिन,

इन्हीं सवालों में फँसकर।

  

लेकिन कभी कभी मैं,

महत्वाकांक्षी भी हो जाता हूँ।

दोनों को संग ले चलने की 

हिम्मत भी जुटा लेता हूँ।

पर दिल,आगाह करता रहता है 

मुश्किल होगा चलना, एक संग

दोनों के बोझ को उठाकर।


मगर एक दिन हुए,बेपरवाही का

आलम ना पूछो।

रिश्तों और ख़्वाहिशों में,भारी

तकरार हो गयी।

जीत हुई थी रिश्तों की

ख़्वाहिशों की पोटली, आख़िरकार

फैंकनी पड़ी।


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