किरदार
किरदार
कुछ इस तरह मिले
सुख-दुख के क्षण
पूरी एक ग़ज़ल
हो गई जिंदगी मेरी,
चली थी नदी
रेत की प्यास बुझाने
स्वयं लुप्त हो गई,
औरों के लिए
प्यार का जज्बा
रखने वाले
कभी टूट कर
बिखरा नहीं करते
यूँ तो परिस्थितियाँ
लाचार होती हैं
आदमी कोई
बुरा होता नहीं
चाहते हो अगर
जमाने में इज़्ज़त
तो हकीक़त के
सांचे में ढलकर देखो
वक्त की आँच पर
पत्थर पिघलाओ
किरदार अपना
बदलकर देखो।