मैं हूँ बालक एक नादान
मैं हूँ बालक एक नादान
मैं हूँ बालक एक नादान, विनती सुन ले हे भगवान,
टूट जाये टीचर की टाँग, प्रिंसिपल को हो जाये जुकाम।
ना केमिस्ट्री कहीं पठित हो, स्कूलों में नहीं गणित हो,
बायोलॉजी से सूखते प्राण, इसे हटाना अति त्वरित हो।
ना बस्ता, ट्युशन का चक्कर, नहीं रहूँ मैं अब डर डर कर,
टी. वी. देखूँ चिपक-चिपक कर, आई-पैड खेलूँ खूब मैं डट कर।
भैया को तू दे दे ज्ञान, नहीं अड़ाए अपनी टाँग,
जब घर में हों पुआ पुड़ी, मुझे खिलाये भर पकवान।
दूध देख के आती उल्टी, भिन्डी भी है बहुत सताती,
इन सारों को कहीं हटा ले, कहीं नहीं हो लौकी भाजी।
आलू चिप्स और बड़े समोसे, रसमलाई और गोल गप्पे,
हो जाएँ सब इतने सस्ते, खा पाऊँ मैं पेट भर कसके।
नित परियों की नई कहानी, मुझे सुनाए मेरी नानी,
ओ भोले बस यही चाह है, चलती रहे मेरी मनमानी।