राखी
राखी
कुछ ख्वाहिशें पड़ी रो रही है अंदर
कुछ सच तड़प रहे हैं,
कुछ आग की लपटे भाभक रही हैं
कुछ आंखे नाम सी है ।
इंसाफ की गुहार कहा लगाए ?
अपने ही है अब पराए,
बहन का फ़राज़ क्या खूब निभाया
आपने ही खून को दोषी बनाया ।
अब तो बस राखी का इंतजार है
और, कितना दाग लगने बाकी है,
और क्या सुनना बाकी है
अभी तो राखी का त्योहार बाकी है।
मै हार भी गया तो क्या ?
अपनी जीत की खुशी मना लेना
पर वो कलाई पकड़ मै अब ना आयेगी
राखी पर उपहारों की लड़ी अब ना आयगी ।।