मेरे अश्क़
मेरे अश्क़
आशिक़ी की थी तुमसे
जो बरसो पहले
और लिखे थे अफ़साने दिल पे,
बताना चाहता था तुम्हे कबसे !
कि जो कशिश बनके
बरसे थे
वो बारिश नही
मेरे अश्क़ थे !
और जो आसमान से
टूट के गिरा था
वो तारा नही
वो हम थे !
भुला दिया था ज़माने को
और भूल गए थे खुद को
आशिक़ी में तेरी,
जिन नगमों को आज पढ़कर रोती हो
उसे लिखने वाले हमारे गम थे !
आज फिर से बताना चाहता हूँ कि
जो दिल के आखिरी टुकड़ो में कश थे,
उस दिल में तुम्हारे भी
कुछ अंश थे !
क्योंकि जो कशिश बनके
बरसे थे
वो बारिश नही
मेरे अश्क़ थे !
और जो आसमान से
टूट के गिरा था
वो तारा नही
वो हम थे !