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Arpan Kumar

Abstract Others Romance

3  

Arpan Kumar

Abstract Others Romance

'डर'

'डर'

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मैं अपने डर पर 
क़ाबू पाना चाहता हूँ
जब से होश संभाला है
यही कोशिश करता आ रहा हूँ
मगर डर है कि
मेरे सोच के दर से
भाग ही नहीं रहा 
उल्टे कभी ऐसी तो
कभी वैसी
शक़्ल बनाकर मुझे 
अपनी गिरफ़्त में
रखना चाहता है 
उम्र और अवस्था के
अलग अलग पड़ावों पर 
इसने अपने नए नए रूप गढ़े 
ख़ुद को और परिवार को 
सुरक्षित कर लेने की
जद्दोजहद जितनी बढ़ी
डर उसी अनुपात से बढ़ा
जब जो पाया
उसके छूटने के डर ने 
कुछ पाने के सुख को
बेमज़ा नहीं
तो कमतर अवश्य किया
सोचता हूँ
हमारी खुशियों के
अथाह जल को 
नियंत्रित करनेवाला 
डर कोई डैम है 
या फिर यह
कोई बिजूका है
जो अभिमान की
उड़ान को 
अपने पास
फटकने नहीं देता 
क्या पता 
डर का यह अंकुश
अगर न हो
तो मनुष्य 
किसी मतवाले हाथी सा अनियंत्रित
जाने क्या क्या कुचल डाले 
समय के साथ
और कई बार 
समय से पहले भी 
कई सुंदर चीजें नष्ट होती हैं
काल के साथ
जब डर का ख़याल आता है
तो यह गठजोड़ 
गले पर किसी फंदे सरीखा
महसूस होता है
हमारी उपलब्धियों से
हमें वीतरागी बनाने का
काम करता है यह डर
मौत का कोई प्रकरण 
हमें डराता है
शवगृह में किसी शव को
देखते हुए
हमारा अवचेतन भी 
बेशक कुछ देर के लिए ही सही
हमें निष्प्राण अवश्य करता है
हम झटपट वहाँ से
उठ खड़े होते हैं
स्नान कर स्वयं को 
उससे मुक्त रखने का
प्रयास करते हैं
किसी अशोभनीय और
अप्रिय घटना से 
हमारे भीतर का डर 
हमें दूर रखना चाहता है
तो क्या डर हमारा कोई पुरखा है!
डर आगाह करता है हमें
डरो नहीं
जो है तुम्हारे पास 
उसका उपभोग करो 
क्योंकि कल वह
किसी और का होगा

जैसे तुमसे पहले
वह किसी दूजे के पास था
तो क्या डर कोई सरकार है
जो किसी कालाबाजारी को
रोकता है!
डर 
किसी अबोध को
बुद्धिमान बनाता है 
किसी बेरोजगार को
रोजगार दिलाता है 
डर हमें हत्यारा होने से भी
रोकता है
डर हमें बलात्कारी होने नहीं देता
तो क्या डर कोई योगी है
जो हमें आत्मनियंत्रण
करना सिखाता है!
फिर आए दिन अख़बारों में
दिल दहला देनेवाली जो
खबरें आ रही हैं 
वे क्या हैं
हमारे अपने ही लोग
इतने हिंसक कैसे हैं 
और इनका व्यवहार
इतना पशुवत् कैसे है 
तो क्या डर-मुक्त होकर 
ये इतने ख़तरनाक और
बर्बर हो गए हैं
मैं सोचता हूँ

मैं आजीवन डर को
भगाता रहूँ
और डर मेरी सोच के दुआरे बना रहे 
मैं चाहता हूँ
थोड़ा थोड़ा डर 
हर किसी के द्वार पर 
यूँ ही काबिज़ रहे
डरना ज़रूरी है
अगर हम स्वयं डरेंगे
तो और कुछ हों या न हों
कम से कम औरों के लिए
डरावने नहीं होंगे
डर हमारा बैरी नहीं 
हितैषी है 


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