कल कैसे जी पाएंगे?
कल कैसे जी पाएंगे?
हम भविष्य के निर्माता हैं, कल कैसे जी पाएंगे?
सृष्टि की अनमोल देन का कैसे मोल चुकायेंगे?
धरती दूषित, पानी फैला और हवा का आँचल मैला
धूप निकलना आगजनी है, वृक्षों की भी हुई कमी है
उठते सभी सवालों को हम कैसे हल कर पाएंगे?
सृष्टि की अनमोल...
नहीं बर्फ अब पर्वत चोटी,सर्दी हुई सिकुड़कर छोटी
गर्मी के तेवर भारी हैं, पतझड़ का मौसम जारी है
बादल रास्ता भूल चुके जब बारिश कहाँ से लायेंगे?
सृष्टि की अनमोल...
बचपन बूढ़ा सा दिखता है, यौवन पल भर ही टिकता है
नदियाँ-पोखर लुप्त हुए अब पानी बोतल में बिकता है
बोतल का तो मोल दे रहे कब जल का मोल चुकायेंगे?
सृष्टि की अनमोल...
मानों मेरा इतना कहना, गलती पर अब चुप मत रहना
करे गन्दगी उसको टोको, पेड़ जो काटे उसको रोको
पालीथीन को दूर भगाओ, जल की एक-एक बूँद बचाओ
थोड़ी-थोड़ी कोशिश से हम जीवन सफल बनायेंगे
हम भविष्य के निर्माता हैं, ऐसे कल जी पाएंगे
सृष्टि की अनमोल देन का हम ही मोल चुकायेंगे
हम भविष्य के निर्माता है ऐसे कल जी पाएंगे
ऐसे कल जी पाएंगे, ऐसे कल जी पाएंगे।