नया जमाना
नया जमाना
कभी खाते थे पेट भरने को रोटी
आज भूख में भी रसमलाई चाहिये,
कभी पीते थे मटके का ठंडा पानी
आज रह जायेंगे प्यासे पर पीने को
पानी आरो का ही चाहिये !
कभी करते थे दिन भर मेहनत
और रात को खाट पर पैर पसार सोते थे,
आज सोते हैं फोम के गद्दों पर
फिर भी नींद आती नहीं क्योंकि
सोने के लिये भी अब एक गोली चाहिये !
कभी मीलों चलते थे पैदल और
सेहतमंद रहते थे
दिख जाये जो कभी वैध तो
दूर से ही राम राम कहते थे,
अब स्वस्थ्य रहने के लिये
सुबह सबेरे योगा करते हैं
फिर भी खुद को बीमार कहते हैं !
और तो और अब यहाँ चिकित्सक से
मिलने को भी लंबी-लंबी लाइन लगानी पड़ती है,
वाह रे नया जमाना की खुद को
जिन्दा रखने के लिये भी
दिन रात दवाई खानी पड़ती है !
मैं सोचता हूँ यह कैसा है कमाल
विज्ञान का या वैज्ञानिक इस युग का,
जो हमने खुद को आज इतना निकम्मा
और नकारा बना लिया,
हाथ-पैर हिलाते नहीं
बस इन मशीनों को ही
अपना सहारा बना लिया !
आज हम मोटर कार कम्प्यूटर
मोबाइल के चक्रव्यूह में
इस तरह फँस गये हैं,
ना चाहते हुये भी अब हम
इनके गुलाम बन गये हैं !
यही है इस नये जमाने की
व्यंग्यात्मक सच्चाई
जहाँ खाने को मिलती तो है
रसमलाई पर पचती नहीं,
और तो और अब देखो
कैसा देखने को मिल रहा है
इस नये जमाने का प्रभाव जहाँ
बालकों के पक रहे अभी से बाल
और नौजवानों के सर पर अब
बाल बचते नहीं !!