माँ गंगा
माँ गंगा
माँ गंगा तेरा जल जो पावन,
अमिय-सुधा, कण-कण गुण-भावन
दूषित-मलिन पुत्रों ने कर दिया
ऐसा द्रोह माँ से कर दिया,
क्लेश में न भय है न सेवा का भार
जननी को दूषित कर, दूषित कर दिया संसार
माँ गंगा मेरी अरज सुनो
प्रायिश्चित की ये गरज सुनो
विनती अब ये बच्चों की हैं
प्रतिज्ञा अब ये निष्छल की हैं
'माँ की सेवा हर पल' की है
जल तेरा होगा विमल-निर्मल
जैसी है तेरी ममता- माँ गंगा!
माँ गंगा तेरा जल जो पावन,
अमिय-सुधा, कण-कण गुण-भावन।
गंगे तेरे कण कण में शम्भू का निवास
माँ तेरे ही तट पर हर मानुष को मोक्ष की आस।
प्रयाग पर संगम-कर किया तुमने जन-कल्याण,
लेकिन पापियों ने न रखा सम्मान।
तुम दुर्गा, तुम सरस्वती, तुम ही हो सीता
तुम ही वेद, तुम ही पुराण, तुम ही हो भगवद् गीता।
कर्म कि पुकार अब दे रही ललकार,
तेरी ममता से अब ह्रदय हुआ विकार।
अब भी समय ने साथ न छोड़ा है
पुत्रों ने क्यूँ मुख मोड़ा है?
माँ गंगा तेरा जल जो पावन,
अमिय-सुधा, कण-कण गुण भावन।