मोहब्बत है इन राहों से
मोहब्बत है इन राहों से
मोहब्बत है इन राहों से मुझको
चलते रहना ही मंज़िल है मेरी।
पंछी हूँ, स्थिर नहीं रहता
सागर की तरह बहता रहता हूँ
दीवार नहीं जो खड़ा रहूँ मैं
चलते रहना कर्म है मेरा
मैं खुद को सफ़र ही जान चला हूँ
सबको अपना मान चला हूँ
एक भी मैं हूँ, अनेक भी मैं ही
देश सरीखा परदेश भी मैं ही
सपनों का भण्डार भी मैं हूँ
यथार्थ में पल रहा ज्ञान भी मैं हूँ
पंच तत्व से बना मनुष्य मैं
उक्त पंक्ति पहचान है मेरी
मोहब्बत है इन राहों से मुझको
चलते रहना ही मंज़िल है मेरी।।