नक़ाब
नक़ाब
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कितने मसरूफ़ रहते हैं न
लोग आजकल
इतने नक़ाब जो
बदलने पड़ते हैं उन्हें
कभी प्यार का ऐसा नक़ाब
चढ़ा लेते हैं कि लगता है
उनसे ज्यादा हमसे प्यार
कोई कर ही नहीं सकता
पर जब उन्हें लगता है हमें
उनकी आदत हो गयी है
वो बदल का खामोशी का
नक़ाब पहन लेते हैं
हज़ार मिन्नतें और
लाख मनुहार के बाद भी
उनकी खामोशी नही टूटती
बल्कि और मजबूत हो जाती है
लेकिन जब उन्हें लगता है
हम टूट रहे हैं तो
वो एक और नक़ाब लगाते हैं
दया का
उन्हें इस बात का ज़रा भी
इल्म नहीं की उनके इन हरकतों से
हम उनसे बहुत दूर चले जाते हैं
सदा सदा के लिए
और वो रह जातें हैं अकेले अपने
हज़ार नकाबों के साथ !!