हिंसा के खिलाफ
हिंसा के खिलाफ
बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ
जब देखता हूं ये कोलाहल
ये जातिवाद की राजनीति
कभी हिन्दू , कभी मुस्लिम
और कभी
इतिहास , संस्कृति के नाम पर
नन्हें - नन्हे बच्चों पर पथराव
हाँ!
मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।।
वो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे
कभी वंदे मातरम के नाम पर राजनीति
किसानों पर गोलियों की बौछार
और फिर
कभी हत्याएं ,तो कभी बलात्कार
हाँ!
मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ।।
वो इंसानियत का मर जाना
लोगों की अस्मिता का चिर - हरण
कलम की ताकत से परेशान होना
उसे तोड़ना,मरोड़ना
और फिर
उसकी हत्या कर देना
हाँ!
मैं बहुत असहाय सा महसूस करता हूँ
अपने आप में बहुत अकेला सा महसूस करता हूँ।।