बड़े शहरो की कहानी
बड़े शहरो की कहानी
मै थोड़ा कमाने बड़े शहर चल पड़ा।
वहाँ जाकर तन्हाई से लड़ पड़ा।
कदम जीस राह पर चली।
वह बंद निकली।
प्यास जीस नहर से टकराई।
वह बंजर निकली।
वहाँ रास्ते खुद को समेट रहे थे।
वहाँ इंसान खुद से लड़ रहे थे।
चलो
प्यास मिटाने के लिए गम मिल गया।
खुशियां नहीं तो मौत ही खील गया।
पहले ज़िन्दगी बढ़ाने के लिए लड़ रहा था।
अब ज़िन्दगी बचाने के लिए लड़ रहा हूँ।
कितने सपने सजाकर आया था।
अब शायद खुद को मिटा कर जाऊंगा