मुख्तसर सी बात हैं क्या ये?
मुख्तसर सी बात हैं क्या ये?
मुख्तसर सी बात है क्या ये?
घुंघरु क्यों हो पायल में बताओ तो?
ताक़ि मैं चलूं तो तुम सुन पाओ कि घर के किस कोने में मैं हूँ अभी!
मुझे पायल तो चाहिए और पहनती भी हूँ
लेकिन इस लिये नहीं कि तुम्हें घुंघरुओं में बंधी मिलूं,
इसलिए कि मुझे पसंद हैं ये श्रृंगार
मुझे कंगन और चूड़ी भी पसन्द है
लेकिन उतने ही जिनमें शोर न हो
तुमसे प्यार जताने को जुबां हैं मेरे पास
और स्पर्श की भाषा भी संग है
नैनों में मनुहार भी
फिर क्यों इनके शोर को ज़रिया बनाऊं
तुम तक आने का?
हाँ ! माथे की लाल बड़ी सी बिंदी में तुम अटके रहो
इसलिए नहीं लगाती
लगाती हूँ बिंदी कि
मुझे मेरे माथे पे ये
तेज़ का प्रतीक सा
आभास देती है
सुनो करती हूँ तुम्हारे ही लिये श्रृंगार लेकिन इसलिए कि ये मुझे भी उतने ही पसन्द है
मेरे मन के शोर की तरह और तभी इन्हें आवाज़ नहीं
साथी भी नहीं
ज़रिया भी नहीं बस आदत मानती हूँ
अब मेरी ये आदत तुम्हें हैं पसन्द तो वज़ह तुम ही जानो!