पहचान
पहचान
ऐ दुनिया तेरे तरीके अजीब
समझ ना आये तेरे तरकीब
किसान भूख मिटाने उगाए अनाज
खुद रह जाये दाने दाने को मोहताज
नये कपड़े सीले दरजी
फटे पुराने नसीब बिन मर्जी
माली सींचे पौधे फूल
मिलके मिट्टी में और धूल
मेहतर साफ करे सड़कें
उसके फेफड़े प्रदूषण से भड़के
कोई बेचे सब्जी फल
घर पे मिले सिर्फ दाल चावल
औरों के कपड़े धोये साफ सुथरे
मैले पहन के खुद धोबी निकले
रिक्शा चलाते पहुंचाये मंजिल तक
पर उसके सिर पर नहीं एक छत
मोची जूते सिये और चमकाये
चाहे उसके पांव चमड़ी बनके घिस जायेे
वीर जवान प्यार भरे परिवार छोड़
दुश्मनी निभाने चले सीमा की ओर
ऐ दुनिया क्या विडम्बना है तेरी
जो इस किस्म के खेल रही हो
क्या उसकी आवाज़ में दम नहीं
नज़र नहीं आंखों में उसकी नमी
काम में उसके क्या है कमी
जीवन फिर इतनी क्यूँ सूनी
तुच्छता से उसे ऐसे रखे सजाये
बिन पेहचान सिर्फ परछाई सी रह जाये
माँ की कोख से आये और मिट्टी में जा मिल जाए
जैसे बादल से टपके आंसू घरती में समा जाये
अनदेखे अनसुने आये और चले जाये
बिन रोये बिन अंजली के गुजर जाये
ऐ दुनिया तेरे तौर तरीके अजीब
समझ ना आये तेरे तरकीब