गुनहगार
गुनहगार
हैं होशों-हवाश गुम से मेरे
खुद को खुद की खबर नहीं।
और तुम हो कि इस जहां की सुन
मुझे दोषी बनाए जा रहे।
इस ज़माने ने बेरूखी
हर बार की है मुझसे।
और तुम हो कि साथ देने बजाए
मुझपे इल्ज़ाम लगाए जा रहे।
अब तो सब अपनी ख़ातिर
सच को झूठ बना देते हैं।
और तुम हो कि उस झूठ पर
मुझे यक़ीन कराए जा रहे।
मैं तो आने वाले कल की
उम्मीद लिए बैठी हूँ।
और तुम हो कि मुझे बीते कल की
गुलाम बनाए जा रहे।
ये चिंगारी भड़क कर एक दिन
खुद का ही घर जलाएगी।
और तुम हो कि होंठों को सीकर
तमाशा देखे जा रहे।
हर बार सुनी है खुद की तुमनें
हालात भी बेपरवाह से हैं।
और हम आदत से होकर मजबूर
तुमसे आस लगाए जा रहे।
हैं होशों-हवाश गुम से मेरे
खुद को खुद की खबर नहीं।
और तुम हो कि इस जहां की सुन
मुझे दोषी बनाए जा रहे।