लक्ष्य भी हमें साधता है !
लक्ष्य भी हमें साधता है !
हम ही हमेशा लक्ष्य नहीं साधते
लक्ष्य भी हमें साधता है
जब हम हताश हो
उम्मीद की परिधि से हट जाते हैं।
सब व्यर्थ है की भारी भरकम सोच से
ज़िन्दगी को निरुद्देश्य देखते हैं
तब लक्ष्य हमारी तरफ अग्रसर होता है
उम्मीदों की अनेकों पांडुलिपियाँ थमाता है।
निर्विकार मन से कहता है
अर्जुन को भी
श्री कृष्ण की गीता
तभी सुनने को मिली
जब उन्होंने गांडीव को नीचे रख दिया !
कुछ भी पाने के लिए
खोना स्वीकार करना होता है
एक एक सत्य के लिए
झूठ के दलदल में धँसना होता है।
रक्तरंजित मैदान में
मन के चक्रव्यूह से निकल
मस्तिष्क को शतरंज बनाना पड़ता है
लक्ष्य के बढ़े कदमों को
अर्थ देना होता है ...।