दास्तान
दास्तान
उस मंजर पे जब तलक नजर जाती है
तमाम उम्र ,ऐ दोस्त गुज़र जाती है
जिस लिए जिंदगी भर की थी जद्दोजहद
सामने से चीज यूँही गुज़र जाती है
कितना तड़पाओगी तुम ऐ जिंदगी
एक रोटी भूख, तुम्हें कुचल जाती है
जाना था मुझे कहाँ ? पहुँचा हूँ कहाँ?
तय से पहले मंज़िल निकल जाती है
वो आशा ,वो ख्वाहिशें कहाँ चली गयी?
संजोया था अरसे से, फिसल जाती है