बदलेगी तस्वीर
बदलेगी तस्वीर
इस चुप्पी के पीछे, छिपी हैं कई आवाजें,
जो तड़प रहीं हैं, बाहर आने को,
बेताब हैं जो खुद को, बयान करने को ।
जिन्हें दबा दिया गया है,
इज्ज़त और मर्यादा का हवाला दे कर,
डर के दलदल में वो ऐसी हैं,
कि जितना बाहर आने की कोशिश करती हैं,
उतनी ही गहराई में, वो दबतीं चली जाती हैं ।
लेकिन, जिस दिन ये आवाजें,
चुप्पी की इन सलाखों को तोड़,
गुलामी के सारे पिंजरो को छोड़,
बाहर क़दम रखेँगी ।
उस दिन,
बदल जाएगी हर तस्वीर, और हर वो मंजर,
जिनके तले दबी, डरी और सहमी चुप्पी,
तोड़ देगी अपना दम ।
और तब्दील हो जाएगी,
ऐसी निडर और बुलन्द आवाजों में,
जिनकी गूंज हर उस शख्स तक पहुँचेगी,
जो किसी की उड़ान को कैद कर,
खुद खुले आसमां पर, कब्ज़ा जमाये बैठे है ।
जो खुद तो इंसानियत भूला चुके हैं,
मगर दूसरों को इंसानियत का पाठ पढ़ाना चाहते हैं,
जिन्हें आदत हो चुकी है, दूसरों के हक को छिनने की,
औऱ उनपर तानाशाही करने की ।
तब,
हर वो शख्स खड़ा होगा कटघरे में सर झुकाये,
और पेश-ए-खिदमत में होंगी उनकी दलीलें,
ऐसी दलीलें जो ना ही अर्थपूर्ण होंगी,
और ना ही जिनका कोई अस्तित्व होगा,
खोखले विचारॊं की नींव कब तक टिकेगी,
ढह जाएगी जल्द ।
और तब,
निडर और स्वतन्त्र विचारों की लहर,
जन्म देगी एक नवयुग को,
जहाँ समानता, इंसानियत औऱ प्यार के नए फूल,
भारत देश को फिर ऐसे रंगों से भर देंगे
जहाँ ना ही नफ़रतों के काँटे होंगे,
और ना ही कोई किसी का विरोधी ।
सभी पूरक होंगे एक दूजे के,
औऱ,
खुशहाल अर्थपूर्ण जीवन,
अपना अस्तित्व मजबूत कर रहा होगा ।।