माँ (ग़ज़ल)
माँ (ग़ज़ल)
हज़ार दर्द माँ अपने जता नहीं पाई।
मगर वो बेटे के ग़म को छुपा नहीं पाई।
गलत ही राह दिखाता रहा जहां मुझको।
बताया माँ ने जो दुनिया बता नहीं पाई।
हरेक शै में दिखा नूर माँ की आँखों से।
कोई भी आँख वो मंज़र दिखा नहीं पाई।
हज़ार बार ये सफ़्हे किताब के पलटे।
सिखाया माँ ने जो पोथी सिखा नहीं पाई।
तमाम मुश्किलों से मैं कमल निकल आया।
दुआ थी माँ की जो दुनिया सता नहीं पाई।