माँ
माँ
माँ की ममता है जग से निराली,
हिय से आती करूण पुकार,
भाव प्रवण त्याग तपस्या की,
प्रतिमूर्ति माँ ही दिखलायें।
उंगली पकड़ जो चलना सिखाये,
प्रथम पाठशाला है माँ की गोदी,
ध्यान हमेशा सुत पर,
ऐसा नेह न जग में पायें।
सर्वस्व सुत-सुता समर्पित,
प्रतिदिन का समय अपना,
सुता हेतुखान पान मे सब अर्पण,
जननी का प्रबल भाव दिखलाये।
तन मन धन सर्वस्व समर्पण,
तब भी माँ का ऋण चुका न पाऊं,
सतसत नमन वन्दन अभिनन्दन,
सातों जनम तेरा ही माँ गर्भ नजर आये।
जग के सारे रिश्ते झूठे,
तू ही सत्य की धार है माँ,
"अंजलि" दोष क्षमा कर जननी,
अपना नेह आशीष सदैव देती नजर आयें।