तन्हाई
तन्हाई
तन्हाई
तन्हा नहीं होती
ढ़ेरो बुझी हुई
यादों के कंदील
जो कहीं सुलगते
रहते अंदर ही
अंदर
ऊपर जमी
ठंडी मोम,
तन्हाई बहुत
बोलती है
अबूझ एक
भाषा में जो
समझता वही
जो भीड़ में
तन्हा हो,
हाथों में हो
हाथ
मगर गर्माहट
कहीं नदारद हो
वो एक छुवन को
तरसती हथेली
उस जकड़न में
कसमसाती सासें
तन्हाई बड़ी लम्बी
होती है
हो वो बिस्तर के
एक कोने में
सिमटी हुई सी ,
साथ हो साँसों का
शोर फ़िर भी
सरगम की तलाश में
ये तलाश क्या मरीचिका है
या है कसक पूर्ण होने की
तन्हाई भी तो तन्हा सोचती है