सेवानिवृति
सेवानिवृति
हाँ, अब आज़ाद हो गया हूँ मैं।
सुबह की पाबंदियों में,
अनमने दफ्तर निकलना।
दफ्तर की बेड़ियों में,
उलझ सारा दिन बिताना।।
एटेंडैंस की कवरेज से,
अब दूर हो चुका हूँ मैं।
सच, अब आज़ाद हो गया हूँ मैं।।
कंकपाती ठंड हो या,
हो सुलगती धूप तेज।
आँधी, बारिस या हो ट्रैफिक,
छुट्टी लेना है निषेध।।
अवकाश की सीमाओं से,
अब मुक्त हो गया हूँ मैं।
सच, अब आज़ाद हो चुका हूँ मैं ।।
मुझे अब गर्व है मुझपर,
सेवा पूर्ण की है आज ।
सिटिज़न बन चुका सीनियर,
करने हैं बहुत से काम।।
बस, ट्रेन और कई जगह,
आरक्षित सुविधा का हकदार हो गया हूँ मैं।
सच, अब आज़ाद हो गया हूँ मैं ।।