तवायफ़
तवायफ़
तवायफ़ हूँ मेमसाहब
नाम तो सुना ही होगा
कभी चौराहे पे तो कभी बाज़ारों में
तुमने हमें, बिकते देखा ही होगा
कभी नज़रे तुमने फेरी होगी
तो कभी मन से गालियाँ दी होगी...
दुआ मे भले ही न सही
पर बद्दुआओं में तो याद किया ही होगा
वेश्या, तवायफ़ और ना जाने क्या-क्या कहके
हमें उपनाम तो कई दिये ही होंगे
'कोठे की' कभी बोल के
अपने बच्चों से तो अलग किया ही होगा
गलत नहीं तुम पर
ना बन पाई सही भी
कभी हमारे लिए मन में
एक काश तो उठा ही होगा
सीखे तो तुम्हें बचपन से ही दी होगी
कि बनना न कभी मुझ जैसा
कभी मन में उठा होगा सवाल तुम्हारे
कि कैसे कर जाता है एक औरत का मन ऐसा
नौकर बन जाती पेट पालने के लिए या कुछ और कर लेती
पर सच कहूँ तो दुनिया में सब कुछ इतना आसान नहीं होता
मन मेरा भी बोला करता था सिर्फ 'मैं ही क्यों'
अंदर से रोज़ मांगती थी
कि कब साँसे टूटेंगी यूँ
अब आदत सी लग गयी है रोज़ रात दुल्हन बनने की
अब तो लत सी लग गयी है तेरी कड़वी बातें सुनने की
तवायफ हूँ मेमसाहब
नाम तो सुना ही होगा
कभी चौराहे पे तो कभी बाज़ारों में
तुमने हमें तो बिकते देखा ही होगा