बाबा साहब की चिंगारी
बाबा साहब की चिंगारी
मुझे मिटाने है वह सारे चिन्ह
जो बाँट देते हैं मेरे मनुष्यत्व को
जाति धर्म के नाम पर।
मुझे तोड़ने हैं वह सारे बंधन
जो छीन लेते हैं मुझसे
साँस लेने की आजादी को।
चतुरवर्ण के नाम पर।
मुझे तोड़नी है वह सारी बेड़ियाँ
जो बाँध देती है
मेरे इन्सानी अस्तित्व को
औरत और परंपरा के नाम पर।
मुझे मिटाने है वह सारे कलंक
जो जीना ही दुश्वार करे मेरा
गरीबी, अज्ञानी,
भ्रष्टाचारी के नाम पर।
मुझे जलाने हैं,
बाबा साहब की चिंगारी बन
अलिखित जुल्मों के
उन सारे फरमानों को,
जो इजाजद दे
चंद इन्सानों को,
इन्सान नोंच खाने की।