हुस्न
हुस्न
किसी का दिल काबू तो किसी का बेकाबू है,
तुझे क्या पता मेरे हुस्न में क्या जादू है।
समुद्र की गहराई को जो ना माप पाओ,
तो मेरी आँखों में एक बार झाँक लेना।
फिर खुद को गहराई में डूबने से समेट लेना।
वार इस कटीली नैनो का यूँ रुकता नहीं,
लग जाए गर तो कभी चूकता नहीं।
सूरज की लालिमा जब इन होंठों पर पड़ती है,
संध्या भी कुछ फीकी-फीकी सी लगती है।
कोयल की मिठास का आगाज होता है,
जब लोगों को इन लब्जों का एहसास होता है।
जुल्फों की काली घटाओं का जादू मस्ताना है,
दिवानों को करे और भी दिवाना है।
एे हुस्न के दिवाने सुन एक और राज बताए,
दिल के बेकाबू होने का दूजा हिस्सा सुनाए।
छोड़ उन नैनों को जिसने तुझे घायल किया,
छोड़ उन अधरों को जिसने तुझे कायल किया।
छोड़ उन जुल्फों को जिसने मस्ताना किया।।
ये हुस्न मुझे शमां और तुझे परवाना बनायेगा,
एक उम्र दराज के बाद आखिर ढल ही जाएगा।
हुस्न पर मरने वाले तो लाखों दिवाने हैं,
रंग रूप सब एक दिन ढल जाने है।
असलियत का हुस्न तो दिल में छुपा है,
हर चाहत का मजा इसमें उलझा है।
इस दिल की धड़कन भी बेकाबू है,
तुझे क्या पता इस दिल में सब जादू है।।