आखिरी खत
आखिरी खत
जानती हूँ दोस्त
बहुत नागवार लगेगा तुम्हें
मेरा यूँ अचानक चले जाना
पर जैसे खिंची चली जा रही हूँ मैं
किसी ओर लगातार धीरे-धीरे
कितनी लाचार लगती थीं तुम
हर बार भेजते हुए
डायलिसिस पर डबडबाई आँखों से
जब अपनों ने ही हाथ खड़े कर दिए
थाम लिया था तुमने कितनी आसानी से
जता दिया था जैसे
जिस्म भले ही दो हों
बहते लहू का रंग एक ही था
दोस्त, मेरी असहनीय पीड़ा
तुम्हारे चेहरे पर साफ नज़र आती थी
मर मैं रही थी
मौत तुम्हारी आँखों में झलक रही थीl
तुम्हारा बस चलता तो
झपट्टा मार कर छीन लेतीं
मौत को तुम मुझसे
मुझे पता है दोस्त
मेरे जाने के बाद
तुम रोओगी नहीं
तुम्हारी आँख के आँसू
तो पहले ही सूख चुके हैं
मैं थामना चाहती थी जिंदगी को
पर वह फिसलती रही
रेत की तरह निरंतर
प्यारी दोस्त, मेरे जाने के बाद
न होना गमज़दा
खुश रहना सदा
जिंदगी चाहे जैसी भी हो
बस एक बार मिलती है
अलविदा दोस्त, अलविदा।