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Rajkumar Kumbhaj

Others

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Rajkumar Kumbhaj

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थके-थके से शब्द हैं तो भी

थके-थके से शब्द हैं तो भी

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थके-थके से शब्द हैं तो भी

थके-थके से शब्द हैं तो भी 

थके-थके से ही हैं शब्दों के संवाहक तो भी 

मैं ही नहीं एक अकेला किंतु हैं और-और भी अनेकों 

जिनके सीने में अंगार भरी सड़कें 

बर्फ़ से ढके हैं द्वीप उधार 

बर्फ़ की चादर लपेट सोया है साहस

फैले हैं, फैले हैं अनलिखे पृष्ठ फैले हैं हर तरफ़

शब्द-दर-शब्द, डर ही डर, वहशी हैं सब  और वे जो अहिंसा के पुजारी, महात्मा, महामानव 

सिर्फ़ और सिर्फ़ मौके की प्रतिज्ञा में

प्रतिज्ञा मुझे भी, प्रतिज्ञा में मैं भी 

कि जो भी है और है जितने भी वहशी 

दे सकूँ उन्हें एक कविता, एक दिन 

अभी थका-हारा हूँ तो क्या हुआ , क्या हुआ

थके-थके से शब्द हैं तो भी

छुक-छुक रेलगाड़ी-सी चल रही है साँसें मेरी और ज़िंदा हूँ मैं

 


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