तुम अब क्यों बोले
तुम अब क्यों बोले
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तुम अब क्यों बोले
जब पहला सावन आया था
रिमझिम बादल बरसे थे
मन के अरमान तरसे थे
तब तुम क्यों ना बोले थे !
जब सुन्दर चाँदनी रातों में
झर झर हरसिंगार झरे
हरसिंगार के साथ अरमान झरे
तब तुम क्यों ना बोले थे !
जब चाहा तुम्हारा काँधा
अपने दुःख को बिसराने को
जी भर के रो लेने को
तब तुम क्यों ना बोले थे !
जब सीख लिया ख़ुद से ही
अपनी बातें करना ख़ुद रोना
खुद आँसू पी कर हँस देना
अब तुम क्यों बोले ?
क्यों चाहत हुई बातें करने की
क्यों चाहत प्यार जताने की ?
जब मन की गंगा सूख गई
बारिश से भी ना भर पायेगी
फिर अब तुम क्यों बोले ?