••• पापी पेट •••
••• पापी पेट •••
मासूमियत चलती रही रस्सी पर दबे पाँव बिना कोई आवाज के ऊपर आकाश और जमीन के बीच क्या नहीं दिखा होगा तुम्हे... डर भय पीड़ा या मौत पर ये सब दब गया होगा न उस "पापी छह इंच के पेट" के नीचे या बच्चों की भूख के खातिर.. नीचे बिछी होगी एक फटी सी चादर बज रहा होगा डमरू भीड़ डाल रही होगी सिक्के उछलकर.. कुछ ने तुम्हारी फटी चोली पर फब्दियाँ भी जड़ दी होंगी... आदत जो हो गई तुम्हे इन सब की उतर भी गई होगी सुरक्षित उठा कर पैसे , चली गई होगी कहीं और किसी और चौराहे पर... जीने की एक और सुबह ढूँढने जहाँ फिर वही भय वही डर वही रस्सी.... और वही छह इंच का पेट जो तुझे नहीं जीने देता जीकर भी...!!!
कपिल जैन