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Vinod Kumar Mishra

Drama Fantasy

5.0  

Vinod Kumar Mishra

Drama Fantasy

शायद

शायद

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शायद उनका दिल,

पत्थर ही है जो पिघलता नहीं,

शायद वो खुदा ही है,

जो ढूँढ़ने से भी मिलता नहीं।


शायद मैं भी हूँ उस फ़क़ीर-सा,

जो ठोकर खाकर भी,

न-उम्मीद नहीं होता,

न जाने क्यों वो मेरी,

मोहब्बत का मुरीद नहीं होता।


शायद ये जंग ही है उनकी,

नफरत और मेरी,

मोहब्बत के दरमियाँ।


वो जीत कर भी हारती है,

मैं हार कर भी जीत जाता हूँ,

बात करने को वो तैयार नहीं,

निगाहों से ही अपना,

इश्क़ बयाँ कर जाता हूँ।


न क़ुबूल करो हमारा इश्क़ गम नहीं,

हम अपनी मोहब्बत कम न करेंगे,

ये तो खुदा की मर्ज़ी,

सँवारे अपने बन्दों की ज़िन्दगी,

बन्दे हैं हम बंदगी कम न करेंगे।


शायद उन्हें उम्मीद है,

हमसे अच्छे की,

या हमारी और अच्छाई की,

हम भी हैं आशिक़ सच्चे,

परवाह नहीं तन्हाई की,

परवाह नहीं रुस्वाई की।


शायद आदत है अब इस,

दिल को तेरे ज़ुल्मो सितम की,

तू नज़रें फेर भी ले,

तो मैं बिफरता नहीं।


धड़कन तो रुकेगी तब,

जब तू इकरार करेगी,

तेरी इंकार पर अब,

फर्क पड़ता नहीं।


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