कुछ ख़्वाब शायद
कुछ ख़्वाब शायद
लो सवेरा हो गया फिर एक काली रात गुज़र गयी
मंज़िल की ओर एक और कदम बढ़ा आये हम
पल पल कर के दिन गुज़र रहे हैं रातें भी कट रही है
भूल कर सब ग़मों को ख़ुशियों को गले लगा लो
फूलों की तरह खुशबू बिखेरते चले जाओ
मुरझा कर भी अपनी खुशबू से लोगों को खुश करो
चंद पलों की जिंदगी होती है फूलों की
डाल से टूट कर किसी मंदिर पर चढ़ाए जाते हैं या
फिर किसी की मयत पर
हर काम वक्त पर पूरा हो जाये जरूरी तो नहीं
हर ख़्वाब जीते जी पूरा हो जाये जरूरी तो नहीं
कुछ काम कुछ ख़्वाब रोज़ अधूरे रह जाते है
कुछ ख़्वाब कुछ काम शायद मौत के बाद पूरे होते है
ग़म ना कर बन्दे जितना हो सके उतनी जिम्मेदारियों से
मुक्ति पा लो तो अच्छा होगा....