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Bhavna Thaker

Fantasy

3  

Bhavna Thaker

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अधूरे सपने

अधूरे सपने

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आज मैंने एक सपना बेचा

और कुछ लम्हे ख़रीद लिये ज़िंदगी से

ख़ुशियों के,

मैंने आसमान में रंग भरे, बारिशों से बातें की

ना नहीं सुनी अनकही ही रही..!


कुछ हसरतों के धागों की चद्दर बुनी

नक्काशी भी की जज़्बातो से रेशमी सिरे जोड़कर

सिनी चाही एक तंग चोली

तंग हाथ की तरह उधड़ गई,

लकीरों का तन नंगा था नंगा ही रहा..!


आज बादलों के पार चली तारों को तोड़ा

भर नैनों में मुस्कुराई

पर, सबने कहा फ़िकी हंसी,

चाँद की सुराही को थोड़ा टेढ़ा किया

चख ली मधुर नशीली चाँदनी की बूँदें,

कहाँ वो ज़ायका ज़िंदगी के दर्द ओ ग़म के चटपटे चाट सा..!


लो बचे है कुछ सपने अनदेखे अभी

ढ़ालने है लफ़्ज़ों में

लिखनी है कुछ नज़्म अभी

ना बेचनी नहीं,

दिलजला कोई पढ़ने आता है कभी-कभी

इस चौखट से सुकून बटोरता चले शायद॥



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