सुख के बोझ
सुख के बोझ
एक गुमनाम सड़क, कुछ गुमसुम यादें
कितनी आसानी से तोड़ गये, वो सारे वादे
मैं उम्मीद लगाए बैठा था, एक चैन की नींद सोने को
वो आए, सब छीन ले गये, अब आस नहीं कुछ जीने को
मैं अकेला, अब जाऊं कहां
रेत सी फ़िसलती ज़िन्दगी, क्या रोक दूं यहां?
रोज़ सुबह सूरज की किरणें
लेकर आतीं, एक नया अंधेरा
अब तू बता ए खुदा
कैसे ढूंढ़ू मैं, इसमें अपना बसेरा
रो रहा, तड़प रहा, इस दिखावे के संसार में
कैसे निकलूं बाहर, फंस गया मैं
झूठ से पिरोए जंजाल में
मैं उन्हें कोसूं भी क्यों, वो तो थे मतलब के व्यापारी
मुझे तो ये अहसास न था, सौदे चढ़ेंगी, मेरी खुद की क्यारी
मुखौटों के पीछे के चेहरे, मैं पहचान न पाया
कितनी अज़ीब बात है
अपनी कश्ती को मैंने, खुद डुबोया
पत्तों की आवाज़, अब भयानक सी लगती है
हवा के झोंके, मानों बार-बार डसते हैं
लड़ रहा था मैं, आंखों पे पट्टी के साथ
खुले नैन तो देखा, काट दिए अनजाने में
मैंने खुद के हाथ
मैं बिखर गया टूटकर
अब बचा कुछ नहीं, ले गए सब लूटकर
शायद यही अंजाम था होना
मैं जा रहा, मेरे अपनों, अब तुम सब रोना
ये अंत नहीं शुरूआत है
ऊपर वाली की लाठी नहीं
हमारा खुद पर किया, आघात है
तुम चैन की नींद सोओगे, हम सुख के बोझ उठाएंगे
धड़-संसार विचरण पे होंगे, मन पिंजड़े में रोएंगे