जहाँ जाओगे, वहीं आ जाऊंगी
जहाँ जाओगे, वहीं आ जाऊंगी
जब घूमते होंगे किसी बगीचे में,
फूल पे रुकी ओस की बून्द में
पाओगे मेरा ही अहसास।
जब देखोगे उगते हुए सूरज को
तो पा जाओंगे मेरे स्पर्श की सिरहन।
मंद हल्की सर्द हवाओं में
मेरी खुली बाहें तब भी
भर लेंगी आगोश में।
बारिश की हल्की बौछार मेँ
भीगने को तब भी बेचैन रहोगे
बढा के हाथ मेरे तस्सबुर को छू लोगे।
बच्चों की खिलखिलाहट में भी
ढूंढ़ लोगे कहीं मेरी हँसी की आवाज़।,
तब भी टटोलोगे मुझे कहीं
किताबों में रखे गुलाब की तरह।
ढून्ढ निकालोगे किसी कविता में
मेरी कही सारी बातें।
पूरे चाँद की रात का
तब भी इंतज़ार करोगे।
मुझे यकीं है आसमाँ में देख
मुझसे रोज़ कोई बात करोगे।
मैं भी तो कहाँ मुक्त हो पाऊँगी
इस प्रेम के बंधन से
रहूँ न रहूँ दुनिया में
पर धड़कनो में कहीं
बस के रह जाउंगी।
दूर होकर भी हरपल
अब की तरह ही सताऊँगी।
कहते हो न कि मैं रूह हूँ
जहाँ जाओगे वहीं आ जाऊँगी।