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Shailaja Bhattad

Drama

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Shailaja Bhattad

Drama

वर्तमान की कश्मकश

वर्तमान की कश्मकश

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आज और कल का,

चोली-दामन का साथ है ।

और भविष्य का भी इसे,

वरदान है ।

छूकर भी जो छू न सका,

ऐसा ये वर्तमान है ।


दाँये बाँयें कल चलतें हैं ।

कभी चँद्रग्रहण तो ,

कभी सूर्यग्रहण लगते हैं ।

वर्तमान कहने को तो नया है,

लेकिन डोरी ढीली छोड़ रहा है ।

और कल की परछाई में ही पल रहा है इसीलिए,

न चूल्हे का न चक्की का बना है ।


आँखें पीछे मुड़ नहीं सकती ,

मन है कि आगे देख नहीं सकता ।

साँप छछूंदर की गति रखता है ।

विचारों से सदैव तंग रहता है ।

प्रश्न चिन्ह आँखों में रखता है ।


फिर वर्तमान का क्या कहना

हर आहट पर कभी आगे,

तो कभी पीछे मुड़ता है ।

"आज " उस सुकोमल बचपन का ही तो कल है ।

फिर भी खिलखिलाता चेहरा,

बादलों में ओझल है ।


वो अल्हड़पन, वो बाँकपन

जाने किन दिवारों में कैद है ।

न सहज गति न सहज विचार।

अस्तित्वहीनता का ही अहसास ।


मन बना है नास्तिवाद का दास।

बची नहीं अब कोई भी आस।

काश ये सब होता सिर्फ़ ख़्वाब ।।

खुदा ने भी क्या सिखाया है।

हर भूत को भूल, आगे बढ़ना बताया है ।


लेता है जीव कई-कई जन्म,

जिसका कल सिर्फ़ खुदा को ज्ञात होता है ।

लेकिन जीवन में जीव खुद का ही,

भूत, भविष्य, वर्तमान बना लेता है

और तीन पैरों के साथ चलकर ,

रोशनी को बुझा देता है ।।


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