एक दाना
एक दाना
एक दाना
मुँह तक आते आते
एक दाने पर
हजा़र कत्ल के दाग़ होते हैं
किसान को पता है
केचूऐ का
कुदाल से कट जाने की छटपट
मेढ़क की बस्ती का उजाड़
पेट फटी लाशों का बिखराव
जानता है किसान
कीटनाश के छिड़काव से मरे
कीडे़ और मकोडो़ं पर
नहीं होता मातम
अंगोछा झाड़ता
चला आता है किसान
बिन पछतावे की रोटी
हम सभी के
खूनी मुँह से होते हुए
अंतडियों के नरक तक जाती है
दाना धरती का कातिल
और मसीहा भी।