माँ तो माँ है आखिर
माँ तो माँ है आखिर
बस एक लफ़्ज़ लिखा मैंने
" माँ !"
और सारी दुनिया सिमट आई !
जैसे किसी खिड़की से होके
बाद ए नसीम चली आई !
माँ !... अक्सर रसोईघर में सिमटी रहती है
यहीं से वो पूरा परिवार चलाती है
दाल चीनी के डिब्बों में
मुसीबत का वक़्त छिपाती है
मुहल्ले के बहुत से मसले
माँ की रसोई में गौरतलब रखें हैं !
माँ के आँचल की गांठ में कुछ फ़िक्रें बन्धी हैं
इक गांठ बेटी की शादी की है
पिछले पखवाड़े बेटी की किसी छुपी बात का
हल ..माँ ने रसोई में ही कानों कान निकाला था
तब से कोई फ़िक़्र उसकी गाँठ में बन्धी रही हैं
या फिर याद !
माँ के हाथों में बर्तनों से बहुत से कटाव हैं
जिनकी दरारों में कितने बरस झांकते हैं
माँ अपने आँचल से ढंककर अक्सर पिता जी के लिए
चाय लेकर जाती थी
उनके बाद ..चाय पीते वक़्त माँ को अक्सर रोते देखा है
मानो चाय के घूँट नहीं ..गर्म लावा पी रही हो
सर पर हमेशा जिम्मेदारियों की गठरी ढोती रही
याद नहीं मुझे कि कभी माँ ने अपने मायके की याद को
हमसे बांटा हो
हाँ ! अपनी माँ को दुःख की घडी में याद किया करती थी
या फिर जब ...जब पिता जी डांट पड़ जाया करती थी
माँ की पीठ पर अब भी वो निशान है जो
जो पिता की पिटाई खाते वक़्त उन्होंने अपने ऊपर
ले लिया था
माँ को तब बुखार था
धीरे धीरे तब्दीलियां होती रहीं और माँ
इन सब तब्दीलयों का हिसाब रखती रही
बेटियां जा चुकीं घर से .. बहुएं आ गईं
अब माँ की रसोई में उनका खूब दखल चलता है
जो वो चाहती हैं वही सब बनता है
उन्हें अच्छा नहीं लगता की माँ इस बात पे टोके
कि " बहू ज़रा तेल कम करो ..खुला हाथ मत चलाओ !"
अंजाम ये कि आज इसी माँ की पूछ नहीं
अब माँ को उठने बैठने में वक़्त लगा करता है
माँ अब घण्टों उस छोटी सी खिड़की के बाहर शून्य में
तकती रहती है
जो उसके छोटे से कमरे में गली की पिछली और खुलती है
एहसान है बेटों का कि घर के सबसे पिछले
बाहरी हिस्से में माँ को एक कमरा दे दिया है
कुछ खास फासला नहीं बस
माँ अगर खांसे तो बेटे के कानों तक
माँ की खांसी नहींं आती
अब बेटियां भी आती हैं तो अपना अपना कह सुन
चली जाती हैं
माँ के सुखें होंठों और सुनी आँखों में
उसकी खुद की कहानी रखी रह जाती है
जो कोई नहीं सुनना चाहता ...
माँ ..! की नसीहतों में हमेशा यही था कि
घर कभी टूटने मत देना
और मज़े की बात ये कि
सबने घर को तोड़ दिया !
अब घर में गीत संगीत चला करता है
वो पूजा वो इबादत जाने कहाँ चली गई ?
चावल बीनती माँ का वो मुक़द्दस अक़्स
जैसे सारे घर की सलामती था
आज जब सुबह हुई तो...कई जोड़ी नाटकों
ने चीखा चिल्ली की
"... माँ ने चारपाई पर बीती रात दम तोड़ दिया था !"
बेटों ने रस्मी तौर पर सबको बुला भेजा
बहुओं ने भी जल्द से जल्द
गमगीन साड़ियों को इंतज़ाम किया
बस.... माँ चली गई ..!
कुछ रस्मों में माँ दिखती रही
और फिर ये भी ख़त्म हो गया
आज बरसों बाद जब बड़े बेटे को
खबर लगी कि
उसकी बेटी ने प्रेम विवाह कर लिया है नादानी में
तो
बड़ा बेटा चुपचाप माँ के कमरे में जा बैठा
और देर तलक फर्श पर बने माँ के
तस्व्वुरी चेहरे को तकता रहा
जिसके पल्लू में एक गाँठ अब भी बन्धी हुई थी
और अचानक ही ..माँ !..माँ ! माँ !
कह कर फूट- फूट के रो पड़ा !