तुम्हारा भी कोई मरा होता
तुम्हारा भी कोई मरा होता
तुम्हारा भी कोई मरा होता,
तो तुम यूँ घरयाली आँसू न बहाते
खून से सनी हुई चीथड़ों पे
अगली चुनाव का वोट न जुटाते
पैर के छालों में दर्द कितना होता है.
ये जान ने तुम ऐ.सी. कार से न आते
खौफ का मंज़र जानना होता तो
१०० जवानों से घिर के न आते
मौत का मातम ही मानना होता तो
संसद में सिर्फ हंगामा ही नहीं करते
पर मैं अब ये चाहता हूँ कि
भले ही ये दुआ हो या बददुआ
तुम्हारा भी कोई मरे
वो भी खौफ से डरे
नंगी लाशों से घिरे
और आँखों में खून भरके कहे
हमारी जान के लिए तुम
"इन राक्षसों से क्यूँ नहीं लड़े?